Nov 25, 2009

एक शेर.. खामोशी से

मेरी ज़िन्दगी की ख़ामोशी भी टूट जाएगी|
ग़र आखिरी साँसों से तुम कुछ गुफ्तगू कर लो||


तन्हा











रात तन्हा, बात तन्हा, है आदमी का ख्वाब तन्हा|
जिंदा रहा तन्हाई में, मरने पे उसकी ख़ाक तन्हा||

मंदिर गया, महफ़िल गया, पर हर जगह तन्हा मिला|
है आदमी पे आदमी, क्यों आदमी फिर भी है तन्हा||

एहसास की बुनियाद पर, उनसे मिले तन्हाई में|
इक बात जो हम भी न कह सके, रोये थे वो भी हर बार तन्हा||

रात तन्हा, बात तन्हा, है आदमी का ख्वाब तन्हा|
जिंदा रहा तन्हाई में, मरने पे उसकी ख़ाक तन्हा||

अधूरा ख्वाब

न पूछो मेरा हाल, कि
कैसे जिया हूँ तेरे बाद|

उस रोज़ जो तुम कतरा-कतरा बिखरा गये थे
हर रोज़ शबे तन्हाई में, मैं
अक्सर ढूँढता फिरता हूँ|
हर रोज़ चुनता हूँ इस ख़याल से, कि
इसे एक शक्ल दूंगा
कल कुछ और चुनूंगा|
शब्दों का जादूगर.. नहीं..
कोई बुत ही
फ़रिश्ता भी नहीं
बस एक साथी|

उसे फिर सामने बैठा कर,
वो सब कुछ बयां होगा, कि
कैसा था वो अधूरा ख्वाब
औ कैसे जिया हूँ तेरे बाद||



विरक्ति

विरक्ति: मेरे मन के एक कोने से!