रात तन्हा, बात तन्हा, है आदमी का ख्वाब तन्हा|
जिंदा रहा तन्हाई में, मरने पे उसकी ख़ाक तन्हा||
मंदिर गया, महफ़िल गया, पर हर जगह तन्हा मिला|
है आदमी पे आदमी, क्यों आदमी फिर भी है तन्हा||
एहसास की बुनियाद पर, उनसे मिले तन्हाई में|
इक बात जो हम भी न कह सके, रोये थे वो भी हर बार तन्हा||
रात तन्हा, बात तन्हा, है आदमी का ख्वाब तन्हा|
जिंदा रहा तन्हाई में, मरने पे उसकी ख़ाक तन्हा||
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